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इजराइल क्या है

इजराइल क्या है मात्र 20 हजार 800 किलोमीटर स्क्वायर क्षेत्रफल वाला देश इजराइल इतना छोटा है कि ... तीन इजराइल मिल कर भी राजस्थान जितना नहीं हो सकते !! मात्र और मात्र 87 लाख की जनसंख्या ... मतलब अकेले मुम्बई में जितने लोग लोकलमें डेली सफर करते हैं उतनी ... मात्र इतनी ही जनसँख्या है यहाँ की.. कभी सोचा है कि इतने से देश ने दुनिया को हिला के क्यों रखा है ... तो पहले इतिहास जानले। फिलिस्तीनी आतंकवादियो ने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक गेम्स विलेज में घुसकर 12 इस्राइली खिलाडियों की हत्या कर दी थी, तब प्रधानमंत्री श्रीमती गोल्डा मायर ने सारे मृत खिलाडियो के घरवालो को खुद फोन करके कहा की हम बदला लेंगे और लेकर रहेंगे चाहे कुछ भी हो जाए... तब उन्होंने अपनी गुप्तचर एजेंसी "मोसाद"(जो कि एक सेरिब्रल असेसिनों, प्रोफेशनल किलर्स, और महाखुफिया एजेंटों का पूरा समूह है)  को पूरी छूट दे दी और कहा “इस घटना में जितने लोग भी शामिल है, वो चाहे दुनिया के किसी भी देश में हो, उनको जिन्दा नहीं रहने देना है.... और आखिर में वो सभी अज्ञात मौत मारे गए किसी को पता भी नही चला कि कौन बजा गया ... पूरा विश्व यह

सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह

Monday, October 2, 2017 "सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह" लोकशाही में वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमे जरूर मिली है, परन्तु इस स्वतंत्रता के बल पर हम हमारे पूर्वजों, हमारे कल को गालियाँ देकर क्या हम आज अपने वर्तमान को सँवार रहे है ? आज मेरा प्रश्न है उन भड़काऊ लेखकों की Cut, Paste और Share करनेवाले फेसबुकिया, व्हाट्सएपिया पोस्ट करनेवाले से की आजादी के सही मायने क्या है? कैसे मिली है यह आज़ादी? किसने दिलवाई है यह आजादी? यह जाने बगर हम जो मनमे आये ऐसा महापुरुषों के बारे में लिखते रहते है। आजादीकी लडाइमे हजारों राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता सैनानीयोने अपने अपने तरीके से अपनी विचारधारा, तौरतरीकों, परिस्थितियोंमें अपने निजी जीवन, सुखचैनसे समजोता कर समर्पित भाव से अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर अपना बलिदान देकर हमे आजादी दिलवाई है। चाहे वो शहीद भगतसिंह हो या महात्मा गांधी। दोनों विचारधाराके विपरीत छोर पर खड़े थे, गांधीजी अहिंसात्मक सत्याग्रही थे जबकि सुखदेव, राजगुरू, आज़ाद, भगतसिंह अन्तिमवादी विचारधारा से लडे थे। लेकिन इन सबमे राष्ट्रनिष्ठामें कतई फर्क नही था। आज हम आज़ादी की खुल

"सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह"

"सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह लोकशाही में वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमे जरूर मिली है, परन्तु इस स्वतंत्रता के बल पर हम हमारे कल को गालियाँ देकर क्या हम आज अपने वर्तमान को सँवार रहे है ? आज मेरा प्रश्न है उन  भड़काऊ लेखकों की  Cut, Paste और Share करनेवाले फेसबुकिया, व्हाट्सएपिया पोस्ट करनेवाले से की आजादी के सही मायने क्या है? कैसे मिली है यह आज़ादी? किसने दिलवाई है यह आजादी? आजादीकी लडाइमे हजारों राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता सैनानीयोने अपने अपने तरीके से अपनी विचारधारा, तौरतरीकों, परिस्थितियों एवं अपने निजी जीवन, सुखचैनसे समजोता कर समर्पित भाव से अंग्रेजों के खिलाफ लड़कर अपना बलिदान देकर हमे आजादी दिलवाई है। चाहे वो शहीद भगतसिंह हो या महात्मा गांधी। आज आज़ादी की खुल्ली हवामें साँस लेकर स्वछंदता से किसी देशभक्त परवाने के बलिदान पर आज़ादी के नाम कीचड़ उड़ाने वाले हम लोग आज उस जानलेवा गुलामी की घुटन महशूस कर सकते है? क्या हमारी इतनी औकात है की हम उनकी निष्ठा ओर समर्पण का आकलन कर सके? आज आजादी के 70 साल के बाद भी सरे राह बेटियों की इज्जत लुटनेवाले को रोकने की हिम्मत कितनों में है? घर